सबसे क़ाबिल इन्सान;-Motivation Story by Hindi_Motivationals_Thoughts

                     💠सबसे काबिल इंसान💠



एक बार एक गाँव में गाँव के ही सबसे धनी व्यक्ति ने एक बहुत बड़ा मंदिर बनवाया।


मंदिर जब बन के तैयार हुआ तो बहुत से दर्शनार्थी मंदिर में दर्शन लाभ के लिए पहुँचने लगे। मंदिर की भव्यता को देख लोग मंदिर का गुणगान करते नहीं थकते थे।


समय के साथ मंदिर की ख्याती जाने माने मंदिरों में होने लगी और दूर दूर से लोग दर्शन लाभ को मंदिर में पहुँचने लगे।


श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देख उस व्यक्ति ने मंदिर में ही श्रद्धालुओं के लिए भोजन और ठहरने की व्यवस्था का प्रबंध किया।


लेकिन जल्द ही उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता हुई, जो मंदिर में इन सभी व्यवस्थाओं का देखरेख करे और मंदिर की व्यवस्था बनाए रखे।


अगले ही दिन उसने मंदिर के बाहर एक व्यवस्थापक के लिए नोटिस लगा दिया। नोटिस को देख कई लोग उस धनी व्यक्ति के पास आने लगे। लोगों को पता था की यदि मंदिर में व्यवस्थापक का काम मिल जाएगा, तो वेतन भी बहुत अच्छा मिलेगा


लेकिन वह धनी व्यक्ति सभी से मिलने के बाद उन्हें लोटा देता और सभी से यही कहता की, “मुझे इस कार्य के लिए एक योग्य व्यक्ति चाहिए, जो मंदिर की सही से देखरेख कर सके।”


बहुत से लोग लोटाए जाने पर उस धनी पुरुष को मन ही मन गलियां देते। कुछ लोग उसे मुर्ख और पागल भी कह देते थे। लेकिन वह किसी की बात पर ध्यान नहीं देता और मंदिर के व्यवस्थापक के लिए एक धनी व्यक्ति की खोज में लगा रहता।


वह व्यक्ति रोज सुबह अपने घर की छत पर बैठकर मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को देखा करता।


एक दिन एक बहुत ही गरीब व्यक्ति मंदिर में भगवान के दर्शन को आया। धनी व्यक्ति अपने घर की छत पर बैठा उसे देख रहा था। उसने फटे हुए और मैले कपडे पहने थे। देखने से बहुत पढ़ा लिखा भी नहीं लग रहा था।


जब वह भगवान् का दर्शन करके जाने लगा, तो उस धनी व्यक्ति ने उसे अपने पास बुलाया और कहा, “क्या आप इस मंदिर की व्यवस्था सँभालने का काम करेंगे।


धनी व्यक्ति की बात सुनकर वह काफी आश्चर्य में पड़ गया और हाथ जोड़ते हुए बोला, “सेठ जी, में तो बहुत गरीब आदमी हूँ और पढ़ा लिखा भी नहीं हूँ। इतने बड़े मंदिर का प्रबंधन में कैसे संभाल सकता हूँ।”


धनी व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे मंदिर की व्यवस्था के लिए कोई विद्वान पुरुष नहीं चाहिऐ, मै तो किसी योग्य व्यक्ति को इस मंदिर के प्रबंधन का काम सोंपना चाहता हूँ।


लेकिन इतने सब श्रद्धालुओं में आपने मुझे ही योग्य व्यक्ति क्यों माना” उसने आश्चर्य से पूछा।


धनी व्यक्ति बोला, “में जानता हूँ की आप एक योग्य व्यक्ति हैं। मंदिर के रास्ते में मेने कई दिनों से एक ईंट का टुकड़ा गाड़ा था। जिसका एक कोना ऊपर से निकल आया था। में कई दिनों से देख रहा था, कि उस ईंट के टुकड़े से कई लोगों को ठोकर लगती थी और कई लोग उस ईंट के टुकड़े से ठोकर खाकर गिर भी जाते थे, लेकिन किसी ने भी उस ईंट के टुकड़े को वहां से हटाने कि नहीं सोची।


आपको उस ईंट के टुकड़े से ठोकर नहीं लगी लेकिन फिर भी आपने उसे देखकर वहां से हटाने की सोची।


मेँ देख रहा था की आप मजदुर से फावड़ा लेकर गए और उस टुकड़े को खोदकर वहां की भूमि समतल कर दी।


धनी व्यक्ति की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा, “मैंने कोई महान कार्य नहीं किया है, दूसरों के बारे में सोचना और रास्ते में आने वाली दुविधाओं को दूर करना तो हर मनुष्य का कर्त्तव्य होता है। मैंने तो बस वही किया जो मेरा कर्त्तव्य था।


धनी व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, “अपने कर्तव्यों को जानने और उनका पालन करने वाले लोग ही योग्य लोग होते हैं।” इतना कहकर धनी व्यक्ति ने मंदिर प्रबंधन की जिम्मेदारी उस व्यक्ति को सोंप दी।


शिक्षा;-कोई हमे नहीं देख रहा हो तो भी हमे अपना कर्त्तव्य नहीं भूलना चाहिए।



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